प्रेमनिधि जी की कथा
एक दिन मूसलाधार बारिश हो रही थी। समय सिर्फ सूर्य की गति को देखकर ही ज्ञात होता था। हर क्षण सिर्फ अपने ठाकुरजी के विषय में ही सोचने वाले प्रेमनिधि जी का मन व्याकुल था कि मूसलाधार बारिश के कारण कहीं उनकी सेवा में व्यवधान न आ जाए। इसी चिंता में वे रात में सो भी न सके और बिना समय का अनुमान लगाए घनघाेर काली अंधेरी बरसाती रात में यमुना की ओर चल दिए। मन में ठाकुर जी का ध्यान और कंधे पर सेवा हेतु जल लाने के लिए घड़ा। डगर मुश्किल। हर ओर पानी ही पानी भरा हुआ। चलते− चलते मार्ग दृश्यमान नहीं हो रहा था। तभी उन्होंने देखा कि एक सात− आठ वर्ष का बालक जिसके हाथ में मसाल है, नंगे बदन कांछनी पहने उनके पास आया। धुंधलाती रोशनी में प्रेमनिधि जी उसे देखने लगे।
बालक बोला− बाबा आपको कहां जाना है?
प्रेमनिधि जी ने कहा− ठाकुर जी की सेवा के लिए जल लेने यमुना की ओर जा रहे हूं।
बालक बोला− मैं भी यमुना पार न्यौता देने जा रहा हूं। आप मेरे पीछे चले आइये।
यह सुनकर प्रेमनिधि जी उस बालक के पीछे− पीछे चलने लगे। यमुना नदी के किनारे पहुंचे तो बालक उन्हें छोड़कर आगे चला गया।
प्रेमनिधि जी ने अपने ठाकुर जी का ध्यान कर स्नानादि कर घड़े में जल भरा और वापस जाने के लिए तत्पर हुए। तभी वही बालक फिर से उनके समीप आ गया। उन्होंने देखा कि बालक के चेहरे पर ओजस्वी तेज था और उसका व्यक्तित्व दैवीय प्रतीत हो रहा था।
बालक बोला− बाबा आपको मंदिर मैं छोड़ देता हूं। आप मेरे पीछे− पीेछे चलिए।
प्रेमनिधि जी फिर एक बार फिर अपने नन्हें मार्गदर्शक का अनुसरण करते हुए चल दिए। उस दिन उन्हें प्रतीत हुआ कि जो मार्ग काफी दूरी का था वो आज मात्र तीन पग में ही पूर्ण हो गया। प्रेमनिधि जी अचंभित थे कि मार्ग इतनी शीघ्रता से छोटा कैसे हुआ।
मंदिर का द्वार आने पर उन्होंने बालक से कहा− पुत्र यहीं रुकना तुम्हें मंदिर से प्रसाद लेकर देता हूं।
यह कहकर वो मंदिर में अंदर चले गए। वापस आए तो देखा कि वो बालक अन्तर्ध्यान हो चुका था। इसके बाद जब वो मंगला आरती की सेवा के लिए मंदिर में पुनः गए तब ठाकुर जी की पोशाक से उन्हें मसाल में जलने वाले मीठे तेल की गंध आने लगी। उस वक्त उन्हें ज्ञान हुआ कि स्वयं साक्षात ठाकुर जी उनके पथ प्रदर्शक बने थे किंतु मैं अभागा उन्हें पहचान भी न सका। स्वयं ठाकुर श्याम बिहारी जी ने उन्हें साक्षात्कार करवाया है ये विचार तक न कर सका।
(ये कथा नाभाजी औार प्रियादास जी कृत भक्तमाल के साथ ही गीताप्रेस गोरखपुर की कल्याण पत्रिका के अनेकों अंकों एवं 252 वैष्णव वार्ता में भी उल्लेखित है)
सवैयाः
प्रेमनिधि नाम करे सेवा अभिरामश्याम
आगरो शहर निशि शीश जल ल्याइये।
बरखा सु रितु जित तित आते कीच भइ,
चित चिंता कैसे अपरस ज्याइये।
अंधकार में ही चलें तो बिगार होत
चले यूं विचार म्लेच्छ न छुबाइये।
निकसत द्वार देखयो सुकुमार एक हाथ में मसाल, या के पीछे चले आइये।
(नाभाजी कृत भक्तमाल से लिया गया।)
उर्दू शायर का कलामः अकबरावाद में बड़े सुबह नहाने को प्रेमनिधि जाते थे, कर पाक पवित्र बदन अपना जल ठाकुर जी को लाते थे। इक रोज अंधेरी रैन हुयी ढूंढी रस्ता नहीं पाते थे। तकलीफ रफह करने के लिए गोविंद मसाल बताते थे। (अकबरकालीन उर्दू शायर की कलम से)
ईश्वर साक्षात्कार की दूसरी कथा
उपरोक्त घटना के बाद ठाकुर श्याम बिहारी जी का मंदिर आगरा का सबसे बड़ा मंदिर बन चुका था। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के साथ महिलाओं का भी तांता लगा रहता था। वो दौर था अकबर के शासन का। आगरा उस वक्त अकबर की राजधानी था। प्रेमनिधि जी प्रसिद्धि ने लोगों के मन में ईर्ष्या उत्पन्न कर दी थी। उन्हीं में से कुछ ईर्ष्याग्रस्त लोगों ने अकबर से शिकायत कर दी।
कहा− श्यामबिहारी जी मंदिर में भारी संख्या में महिलाओं का आवागमन रहता है और इसके पुजारी प्रेमनिधि का चरित्र सही नहीं है।
अकबर ने बिना विचारे प्रेमनिधि जी को हिरासत में लेने के लिए सैनिक भेज दिये। उस समय प्रेमनिधि जी ठाकुर जी की सेवा में जल की झाड़ी भरने जा रहे थे। उससे पहले ही सैनिकों ने उन्हें रोक दिया और गिरफ्तार करके अकबर के सामने पेश कर दिया। प्रेेमनिधि ने अकबर से निवेदन किया कि− मैं ठाकुर जी की झाड़ी जी भर आउं इसके बाद मुझे आप निसंकोच कैद कर लें किंतु अकबर ने उनका उपहास उड़ाते उन्हें कारागार में बंदी बना दिया।
कारागार में प्रेमनिधि जी ठाकुर जी की सेवा को लेकर व्यथित थे कि मेरे ठाकुर जी तो प्यासे हैं और मैं कारागार में बंदी बन गया हूं। तब उन्होंने करुणभाव से ठाकुर जी से विनय के 25 पद लिखे। प्रेमनिधि जी की हस्तलिखित करुणा पच्चीसी के रूप में आज भी मंदिर में सहेजकर रखे गए हैं। ये भक्तों के लिए दर्शनार्थ उपलब्ध भी हैं।
उसी रात अकबर को स्वप्न हुआ कि उनके पैगंबर उनसे पीने के लिए जल मांग रहे हैं। अकबर ने अपने पैंगबर से कहा कि आपके लिए तो पूरी सल्तनत हाजिर है। पैगंबर ने कहा कि जो जल पिलाने वाला है उसे तो तूने कैद कर दिया है। ये देखते हुए ही अकबर नींद से अचानक जाग उठा और घबराने लगा। उसने बिना विचार तत्काल प्रेमनिधि जी को स्वयं आकर कारागार से निकलवाया और बाइज्जत मंदिर तक भेजा। तब प्रेमनिधि जी ने नियमों का पालन करते हुए ठाकुर जी इसके बाद आजीवन बिना किसी बाधा के अपनी ठाकुर जी सेवा आरंभ की।